अनमोल बुद्ध वचन

अनमोल बुद्ध वचन

सभी पाप कर्मों (अकुशल कर्म) को न करना
कुशल (पुण्य) कार्यों को बढ़ाते रहना
और अपने चित्त को निर्मल करना
यही समस्त बुद्धों की शिक्षा है।

सभी धर्म (अवस्थाएं/विचार) पहले मन में उत्पन्न होते हैं, मन ही प्रमुख, प्रधान है, ये धर्म मनोमय हैं।
जब मनुष्य मलिन मन से बोलता है या कार्य करता है,
तो दुःख उसके पीछे ऐसे ही हो लेता है,
जैसे गाड़ी के पहिये बैलों के पैरों के पीछे-पीछे !

सभी धर्म (अवस्थाएँ/विचार) पहले मन में उत्पन्न होते हैं।
मन ही प्रमुख, प्रधाम है, ये सभी धर्म मनोमय है।
जब मनुष्य स्वच्छ मन से बोलता है, या कर्म करता है,
तो सुख उसके पीछे ऐसे ही हो लेता है,
जैसे कभी साथ न छोड़ने वाली छाया ।

सभी तथागत बुद्ध मार्ग बता देते हैं;
विधि सिखा देते हैं, सभ्यास और प्रयत्न तो तुम्हें ही करना है।
जो स्वयं मार्ग पर आरूढ़ होते हैं, ध्यान में रत होते हैं,
वे मार के बन्धन से याने मृत्यु के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं।

तुम आप ही अपने स्वामी (मालिक) हों, आप ही अपनी गति हो!
अपनी अच्छी या बुरी गति के तुम स्वयं ही तो जिम्मेदार हो!
इसलिए अपने आप को वश में रखो;
उसी प्रकार, जिस प्रकार एक छोड़ों का कुशल व्यापारी श्रेष्ठ घोड़ों को पालतू बनाकर वश में रखता है, संयत करता है।

आंख का संवर (संयम) भला है, भला है कान का संवर।
नाक का संवर भला है, भला है जीभ का संवर।
शरीर का संवर भला है, भला है वाणी का संवर।
मन का संवर भला है, भला है सर्वत्र संवर।
मन और काया में, सर्वत्र संवर करने वाला भिक्षु (साधक)
सब दुखों से मुक्त हो जाता है।

कोई (भिक्षु) साधक सही सावधानी के साथ
जब जब शरीर और चित्त स्कंधों को
उदय-व्यय रूमी अनियत्यता की विपश्यनानुभूति करता है,
तब तक प्रीति-प्रमोद रूपी, अंत: सुख (आध्यात्म) की उपलब्धि करता है तथा अमृत-पद निर्वाण का साक्षात्कार कर लेता है।

सारे लोक प्रज्वलित ही प्रज्वलित है।
सारे लोक प्रकंपित ही प्रकंपित है ।।

संयुक्त निकाय (उप चालासुत्तं)
प्रस्तुति – डी. आर. बेरवाल ‘धम्मरतन’

1 thought on “अनमोल बुद्ध वचन”

  1. आदमी के अच्छे या बुरे कर्म का फल कैसे उसके पिच्छे पिच्छे आता है यह बात बहुतही अच्छी तरीकेसे बताई गयी
    है।

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