द्वितीय बुद्ध शासन में ‘विपश्यना ध्यान साधना’ इन दिनों पूरे विश्व में सर्वाधिक प्रचलित ध्यान साधना विधि है। भगवान तथागत सम्यक सम्बुद्ध की शुद्ध सार्वजनिन एवं वैज्ञानिक शिक्षा आज समूचे विश्व में विपश्यना के नाम से प्रचलित है। यह एक प्रायोगिक ध्यान विधि है। स्वयं प्रयोग करके ही इसे जाना, समझा एवं लाभान्वित हुआ जा सकता है। यद्यपि बौद्धजनों विशेषकर नव बौद्धों में इसके विषय में मत भिन्नता अवश्य है, जो संभवतः ‘जानो फिर मानो’ के बुद्ध के सिद्धान्त पर ही खरी उतर सकती है। हम इस लेख के माध्यम से विपश्यना के भारत में पुनः उद्भव और उसके कल्याणकारी स्वरूप की ही संक्षिप्त चर्चा करेंगे।
विपश्यना भगवान बुद्ध की शिक्षा है अथवा नहीं:
विश्व भर के विद्वान भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को तीन भागों में विभाजित करके देखते हैं, वह है- परियत्ति (याने सैद्धांतिक पक्ष), पटिपत्ति (याने प्रायोगिक पक्ष) और पटिवेदन (अर्थात सच्चाई को टुकड़े करके या बींध बींध कर देखना)। विपश्यना भगवान की शिक्षाओं का प्रायोगिक पक्ष है। स्वयं आजमाकर देखने योग्य है। साक्षात्कार करने योग्य है। तत्काल फलदायी है। धम्म के पथ पर और आगे प्रगति कराने वाली है।
यद्यपि बुद्ध वचनों में सीधा सीधा विपश्यना को ध्यान अथवा समथ कहा गया है। विपश्यना ध्यान का विश्लेषण करने का नाम अर्थात विशेष रूप से देखने, अनुभव करने का ही नाम है। त्रिपिटक के सुत्त पिटक में ‘महा सतिपट्ठान’ और ‘विशुद्धिमार्ग’ आदि ग्रन्थों में इसका विस्तार से वर्णन मिलता है।
विपश्यना का भारत में पुनः आगमन
प्राचीन भारत में विपस्सना खूब फली-फूली और विश्व के अनेक देशों में भी गई। भारत मे बुद्ध विरोधी विचारों के कारण 1000-1500 सालों बाद धीमी होते-होते विपश्यना समाप्त हो गई। मध्यकाल आते-आते लोग इसका नाम भी भूल गए। पड़ौसी देशों में यह कुछ भागों में विशुद्ध रूप से चलती रही। विशेषकर म्यानमार (बर्मा) में गुरु शिष्य परंपरा से प्रचलित रही। यह भारत में गृहस्थ आचार्य उबा खिन के शिष्य सत्यनारायण गोयनका जी के माध्यम से यह अनमोल विद्या 1969 में पुनः आई। भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के लगभग 2500 वर्षों बाद फिर इसका पदापर्ण भारत में हुआ।
भारत के विभिन्न भागों में विपश्यना
वर्तमान समय में विपश्यना का चक्र पुन: चल चुका है और तेजी से यह देश के लगभग हर कोने में जा रही है और लोगों का कल्याण कर रही है। विपश्यना के प्रचार-प्रसार के लगभग 1000 सहायक एवं वरिष्ठ आचार्य मूल रूप में लगभग 250 केन्द्रों पर इसका प्रशिक्षण दे रहे हैं। बुद्ध की शिक्षाओं को पुनः भारत में अपने शुद्ध, सार्वजनिन एवं वैज्ञानिक रूप में पुन: देखकर सभी बौद्धों को बहुत सकून मिलता है। इस विद्या के माध्यम से ही वे बुद्ध की धम्म क्रांति को सही रूप में जान-समझ सकते हैं।
विश्व के अधिकांश देशों में विपश्यना
अब विपश्यना विश्व के अधिकांश भू-भाग पर फैल चुकी है। अमेरिका, यू.के., ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, इटली, मंगोलिया, स्पेन, जापान, थाईलैण्ड, ताईवान, कम्बोडिया, श्रीलंका बर्मा, नेपाल आदि देशों के अलावा दुबई, मस्कट, लेबनान, ईरान, सुदूर चीन, कोरिया, पाकिस्तान आदि देशों में भी विपश्यना केन्द्रों के माध्यम के सिखाई जाती है।
विपश्यनाचार्य सत्यनारायण गोयनका जी की भूमिका
पूज्य विश्व विपश्यनाचार्य गोयनका जी द्वारा मुंबई के पास इगतपुरी नाम स्थान पर 1977 में ‘विपश्यना विश्व विद्यापीठ’ की स्थापना करके अनेक कार्य किये गये। पूरे भारत में बढ़ती मांग के अनुसार प्रशिक्षण केंद्र खोले गये। सहायक आचार्यों की नियुक्ति की गई। विपश्यना मासिक पत्रिका का निरंतर प्रकाशन, प्राचीन बौद्ध साहित्य एवं नवीन साहित्य की रचना व प्रकाशन हुआ। बौद्ध देशों की यात्राएँ, भारत के प्राचीन बौद्ध स्थलों की यात्रा एवम् केंद्रों की स्थापना आदि अनेक कार्य हुए। विपश्यना पर अनेक शोध भी हुए हैं।
विपश्यना विशोधन विन्यास के माध्यम से शोधकार्य
मुंबई में विपश्यना रिसर्च इंस्टिट्यूट के माध्यम से मूल बौद्ध साहित्य के त्रिपिटकों के प्रकाशन की योजना, देश-विदेश में अनेक व्याख्यानों का आयोजन, UNO में पूज्य गुरुजी का प्रसिद्ध भाषण, विश्वशान्ति की ओर कदम, शासन-प्रशासन में विपश्यना, सभी धर्म समुदायों में बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार आदि अनेक कार्य हुए। विपश्यना विशोधन विन्यास इसमें सक्रिय भूमिका निभा रहा है। इसके माध्यम से, परियत्ति, साहित्यिक विषयों पर वैज्ञानिक अनुसंधान की सभी सुविधाएं उपलब्ध है।
सभी वर्गों वर्णों को बुद्ध की शिक्षा
भगवान गौतम बुद्ध द्वारा पुनरन्वेषित ‘विपश्यना’ विद्या सर्वथा संप्रदायविहीन एक प्रयोग विधि है। आज जबकि धर्म के नाम पर चारों और इतनी अराजकता फैली हुई है, यह साम्प्रदायिकाविहीन विद्या घोर अंधकार में भी प्रकाश स्तम्भ का काम करती है।
इस विद्या को सिखने के लिए हर सम्प्रदाय के लोग आते हैं- नर हो या नारी, बाल, वृद्ध, युवा सभी उम्र के लोग आते हैं। बहुत ऊंची शिक्षा प्राप्त व्यक्ति आते हैं और एकदम निरक्षर लोग भी। धनाढ्य भी आते हैं और दरिद्रनारायण भी। सरकारी गैर-सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी तथा हर क्षेत्र के व्यापारी, उद्योगपति भी आते हैं। अतः यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हर तबके के लोग विपश्यना सीखने आते हैं।
विपश्यना विशोधन विन्यास और पालि भाषा
विपश्यना विशोधन विन्यास के माध्यम से आजकल ऑनलाईन और पूर्णकालिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है। यह सर्टिफिकेट कोर्स है। इस कोर्स में पालि भाषा और उसके व्याकरण से अवगत कराया जाता है। साथ-साथ त्रिपिटक के कुछ सुत्तों का अभ्यास भी किया जाता है। कोर्स की अवधि 6 माह होती है। इसमें हर शनिवार शाम को और रविवार को प्रातः डेढ़-डेढ़ घण्टे की अभ्यास क्लास होती है। आवदेक द्वारा कम से कम एक दस दिवसीय विपश्यना कोर्स तथा 12वीं कक्षा पास होना जरूरी है।
अतः धम्ममित्रों हम यह कह सकते हैं कि विपश्यना साधना द्वारा भगवान बुद्ध की मूल शिक्षाओं के माध्यम से सभी वर्ग के लोगों के लिए दरवाजे खोल दिये हैं तथा बुद्ध वाणी और वचनों के प्रचार-प्रसार की दिशा में भी बहुत महत्त्वपूर्ण कदम उठाये गये है। विपश्यना लोगों शान्त, निर्मल, विशुद्ध चित्त से काम करने के लिए प्रेरित करती है। यह साधक को पहले से अधिक सक्रिय बना देती है। सबका मंगल हो…!
डी.आर. बेरवाल ‘धम्मरतन’
बुद्ध ज्योति विहार, अजमेर।