धम्मपद – अप्पमादवग्गो # 8

पमादं अप्पमादेन यदा नुदति पण्डितो । पञ्ञापासादमारुय्ह असोको सोकिनि पजं । पब्बतट्ठो व भुम्मट्ठो धीरो बाले अवेक्खति |॥८॥ हिंदी अर्थ जब बुद्धिमान् आदमी प्रमाद को अप्रमाद से जीत लेता है, तो प्रज्ञा-रूपी प्रासाद पर चढ़ा हुआ वह शोकरहित धीर मनुष्य दूसरे शोक-ग्रस्त मूर्ख जनों की ओर उसी तरह देखता है, जैसे पर्वत पर खड़ा हुआ … Read more

धम्मपद – अप्पमादवग्गो # 7

मा पमादमनुयुञ्जेथ मा कामरतिसन्थवं । अप्पमत्तो हि झायन्तो पप्पोति विपुलं सुखं ||७|| हिंदी अर्थ प्रमाद मत करो। काम-भोगों में मत फँसो । प्रमाद रहित हो ध्यान करने से विपुल सुख की प्राप्ति होती है।

धम्मपद – अप्पमादवग्गो # 6

पमादमनुयुञ्जन्ति बाला दुम्मेधिनो जना ।अप्पमादञ्च मेधावी धनं सेट्ठं’ व रक्खति ।।६।। हिंदी अर्थ मूर्ख, दुर्बुद्धि प्रमाद करते हैं । बुद्धिमान् पुरुष श्रेष्ठधन की तरह अप्रमाद की रक्षा करता है।

धम्मपद – अप्पमादवग्गो # 5

उट्ठानेन’प्पमादेन सञ्जमेन दमेन च । दीपं कयिराथ मेधावी यं ओघो नाभिकीरति ।।५।। हिंदी अर्थ बुद्धिमान् मनुष्य उद्योग, अप्रमाद, संयम और दम द्वारा ऐसा द्वीप बनावे, जिसे बाढ़ डुबा न सके।

धम्मपद – अप्पमादवग्गो # 4

उट्ठानवतो सतिमतो सुचिकम्मस्स निसम्मकारिनो। सञ्जतस्स च धम्मजीविनो अप्पमत्तस्स यसोभिवड्ढति ॥४॥ हिंदी अर्थ उद्योगी, जागरूक, पवित्र कर्म करने वाले, सोच समझ कर काम कारने वाले, संयमी, धर्मानुसार जीविका चलाने वाले, अप्रमादी मनुष्य के यश की वृद्धि होती है।

धम्मपद – अप्पमादवग्गो # 3

ते झायिनो साततिका निच्चं दळ्ह-परक्कमा । फुसन्ति धीरा निब्बाणं योगक्खेमं अनुत्तरं ॥३॥ हिंदी अर्थ ध्यान करनेवाले, जागरूक, नित्य दृढ़ पराक्रम में लगे रहनेवाले धीर-जन ही अनुत्तर योग-क्षेम निर्वाण को प्राप्त करते हैं ।

धम्मपद – अप्पमादवग्गो # 2

एवं विसेसतो अत्वा अप्पमादम्हि पण्डिता । अप्पमादे पमोदन्ति अरियानं गोचरे रता ।।२॥ हिंदी अर्थ अप्रमाद के विषय में उसे इस विशेषता को जान, आर्यों के आचरण में रत, पण्डित-जन अप्रमाद में प्रसन्न होते हैं ।

धम्मपद – अप्पमादवग्गो # 1

अप्पमादो अमत-पदं पमादो मच्चुनो पदं । अप्पमत्ता न मीयन्ति ये पमत्ता यथा मता ।। १।। हिंदी अर्थ अप्रमाद अमृत-पद है, प्रमाद मृत्यु का पद । अप्रमादी मनुष्य मरते नहीं, और प्रमादी मनुष्य मृत ही के समान होते हैं ।

धम्मपद – यमकवग्गो # 20

अप्पम्पि चे सहितं भासमानोधम्मस्स होति अनुधम्मचारी।रागञ्च दोसञ्च पहाय मोहं सम्मप्पजानो सुविमुत्तचित्तो ।अनुपादियानो इध वा हुरं वास भागवा सामञ्ञस्स होति ।।२०।। हिंदी अर्थ धर्म-ग्रन्यों का चाहे थोड़ा ही पाठ करे, लेकिन यदि राग, द्वेष तथा मोह से रहित कोई व्यक्ति धर्म के अनुसार आचरण करता है तो ऐसा बुद्धिमान, अनासक्त, यहाँ वहां (दोनों जगह) भोगों के … Read more

धम्मपद – यमकवग्गो # 19

बहुँपि चे सहितं भासमनोन तक्करो होति नरो पमत्तो। गोपो व गावो गणयं परेसंन भागवा सामञ्ञस्स होति ।।१।। हिंदी अर्थ धर्म-ग्रन्थों का कितना ही पाठ करे, लेकिन यदि प्रमाद के कारण मनुष्य उन धर्म-ग्रन्थों के अनुसार आचरण नहीं करता, तो दूसरों की गौवें गिनने वाले ग्वालों की तरह वह श्रमणत्व का भागी नहीं होता।