हिंदी अर्थ
जब बुद्धिमान् आदमी प्रमाद को अप्रमाद से जीत लेता है, तो प्रज्ञा-रूपी प्रासाद पर चढ़ा हुआ वह शोकरहित धीर मनुष्य दूसरे शोक-ग्रस्त मूर्ख जनों की ओर उसी तरह देखता है, जैसे पर्वत पर खड़ा हुआ आदमी जमीन पर खड़े हुए आदमियों की ओर ।
जब बुद्धिमान् आदमी प्रमाद को अप्रमाद से जीत लेता है, तो प्रज्ञा-रूपी प्रासाद पर चढ़ा हुआ वह शोकरहित धीर मनुष्य दूसरे शोक-ग्रस्त मूर्ख जनों की ओर उसी तरह देखता है, जैसे पर्वत पर खड़ा हुआ आदमी जमीन पर खड़े हुए आदमियों की ओर ।