धम्मपद – अप्पमादवग्गो # 2

एवं विसेसतो अत्वा अप्पमादम्हि पण्डिता । अप्पमादे पमोदन्ति अरियानं गोचरे रता ।।२॥

हिंदी अर्थ

अप्रमाद के विषय में उसे इस विशेषता को जान, आर्यों के आचरण में रत, पण्डित-जन अप्रमाद में प्रसन्न होते हैं ।

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