धम्मपद – यमकवग्गो # 18

इध नन्दति पेच्च नन्दतिकतपुञ्ञो उभयत्थ नन्दति ।पुञ्ञं मे कतन्ति नन्दति भीय्यो नन्दति सुग्गतिगतो ।।१८।। हिंदी अर्थ शुभ कर्म करनेवाला मनुष्य दोनों जगह आनन्दित होता है–यहाँ भी और परलोक में भी। मैने शुभ-कर्म किया है ‘ सोच आनन्दित होता है, सुगति को प्राप्त हो और भी आनन्दित होता है ।

धम्मपद – यमकवग्गो # 17

इध तप्पति पेच्च तप्पति पापकारी उभयत्थ तप्पति । पापं मे कतंति तप्पति भीय्यो तप्पति दुग्गतिङ्गतो ।।१७।। हिंदी अर्थ पापी मनुष्य दोनों जगह सतप्त होता है, यहां भी और परलोक में भी। ‘मैने पाप किया है’ सोच सन्तप्त होता है, दुर्गति को प्राप्त हो और भी सन्तप्त होता है ।

धम्मपद – यमकवग्गो # 16

इध मोदति पेच्च मोदति कतपुञ्ञो उभयत्थ मोदति । सो मोदति सो पमोदति दिस्वा कम्मविसुद्धमत्तनो ।।१६।। हिंदी अर्थ शुभ कर्म करने वाला मनुष्य दोनों जगह प्रसन्न रहता है– यहां भी और परलोक में भी । अपने शुभ कार्म को देखकर वह मुदित होता है, प्रमुदित होता है ।

धम्मपद – यमकवग्गो # 15

इध सोचति पेच्च सोचतिपापकारी उभयत्य सोचति । सो सोचति सो विहञ्ञति दिस्वा कम्मकिलिट्ठमत्तनो ।।१५।। हिंदी अर्थ पापी मनुष्य दोनों जगह शोक करता है–यहाँ भी और परलोक में भी । अपने दुष्ट कर्म को देखकर वह शोक करता है, पीड़ित होता है।

धम्मपद – यमकवग्गो # 14

यथागारं सुच्छन्नं वुट्ठी न समतिविज्झति । एवं सुभावितं चित्तं रागो न समतविज्झति ।।१४।। हिंदी अर्थ यदि घर की छत ठीक हो, तो जिस प्रकार उसमें वर्षा का प्रवेश नहीं होता, उसी प्रकार यदि (संयम का) अभ्यास हो, तो मन में राग प्रविष्ट नहीं होता।

धम्मपद – यमकवग्गो # 13

यथागारं दुच्छन्नं वुट्ठी समतिविज्झति । एवं अभावितं चित्तं रागो समतिविज्झति ॥ १३॥ हिन्दी अर्थ यदि घर की छत ठीक न हो, तो जिस प्रकार उसमें वर्षा का प्रवेश हो जाता है, उसी प्रकार यदि (संयम का) अभ्यास न हो, तो मन में राग प्रविष्ट हो जाता है।

धम्मपद – यमकवग्गो # 12

सारञ्च सारतो ञत्वा असारञ्च असारतो। ते सारं अधिगच्छन्ति सम्मासङ्कप्पगोचरा ॥१२॥ हिन्दी अर्थ सार (वस्तु) को सार और असार (वस्तु) को असार समझने वाले, सच्चे संकल्पों में संलग्न मनुष्य सार (वस्तु) को प्राप्त करते हैं ।

धम्मपद – यमकवग्गो # 11

असारे सारमतिनो सारे चासारदस्सिनो । ते सारं नाधिगच्छन्ति मिच्छासङ्कप्पगोचरा ॥११॥ हिन्दी अर्थ असार (वस्तु) को सार और सार (वस्तु) को असार समझने वाले, झूठे संकल्पों में संलग्न मनुष्य सार (वस्तु) को नहीं प्राप्त करते ।

धम्मपद – यमकवग्गो # 10

यो च वन्तकसावस्स सीलेसु सुसमाहितो। उपेतो दमसच्चेन स वे कासावमरहित ।।१०।। हिन्दी अर्थ जिसने अपने मन के मैल को दूर कर दिया है, जो सदाचारी है, सत्य और संयम से युक्त वह व्यक्ति ही काषाय-वस्त्र का अधिकारी है ।

धम्मपद – यमकवग्गो # 9

अनिक्कसावो कासावं यो वस्थं परिदहेस्सति । अपेतो दमसच्चेन न सो कासावमरहति ।।९। हिन्दी अर्थ जो अपने मन को स्वच्छ किए बिना काषाय-वस्त्र को धारण करता है, सत्य और संयम से रहित वह व्यक्ति काषाय-वस्त्र का अधिकारी नहीं है।