मनोपुब्बङ्गमा धम्मा मनोसेट्ठा मनोमया । मनसा चे पसन्नेन भासति वा करोति वा । ततो’नं सुखमन्वेति छाया’ व अनपायिनी ।॥२॥
हिन्दी अर्थ
सभी धर्म (चैतसिक अवस्थायें) पहले मन में उत्पन्न होते हैं, मन ही मुख्य है, वे मनोमय है। जब आदमी स्वच्छ मन से बोलता या कार्य भारता है, तब सुख उसके पीछे पीछे वैसे ही हो लेता है, जैसे कभी साथ न छोड़ने वाली छाया आदमी के पीछे पीछे ।