भारतीय संस्कृति के अनेक पर्वों में मकर संक्राति भी एक महत्वपूर्ण पर्व है। मूलतः यह भी एक पर्व ही है। यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य के उत्तरायन होने से संबंधित है। यह एक खगोलीय घटनाक्रम है, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। भारत और उसके आसपास यह अनेक रूपों में मनाया जाता है।
इसका संबंध फसल की कटाई और खुशियां मनाने से हैं। पारंपरिक रूप से यह पर्व संपन्नता और समृद्धि का पर्व है। इसमें किसान वर्षा, धूप, आग, स्नान, खेतिहर, पशुओं की पूजा आदि करते हैं।
इस अवसर पर लोग गुड, रेवड़ी, तिल के लड्डू खाते हैं। दान देना, खिचड़ी खाना, पतंग उड़ाना, अलाव जलाना, नृत्य आदि करके खूब खुशियां मनाते हैं।
इसे अलग-अलग भागों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे उत्तर भारत में मकर संक्रांति, पंजाब में लोहड़ी, गुजरात में उत्तरायण, कश्मीर में शिभुर सेक्रांत, हरियाणा में माघी, बंगाल में भोगी, बिहार में खिचड़ी, नेपाल में पौष संक्रांति आदि नामों से भी जाना जाता है।
यद्यपि यह विशुद्ध रूप से ऋतु पर्व है, फिर भी अनेक संप्रदाय इसे अपने अपने समूह से जोड़ देते हैं। बौद्ध धम्म की दृष्टि से देखें तो इसमें प्रत्येक माह की पूर्णिमा अमावस्या और दोनों अष्टमीयाँ आर्य उपोसथ व्रत का दिन होते हैं। इस दिन बौद्ध जन पवित्रता के साथ उपवास रखते हैं। शीलों का पालन करना, धम्म साधना का अभ्यास करना, दान देना, खिचड़ी यवागु खाना, मैत्री गुणों को बढ़ाना आदि भी प्राचीन बौद्ध धम्म की परंपराएं हैं। अनेक मिश्रणों से बाद में इनकी जो परिवर्तन हो गए हैं। बौद्धों में इस प्रकार शील, सदाचार मन, की निर्मलता, ज्ञानवान बनने और प्रसन्न रहने को ही सदा प्राथमिकता रहती, जो सुख समृद्धि और शांतिपूर्ण जीवन का आधार है।
सभी का मंगल हो!