यह उस समय की बात है जब गौतम बुद्ध एक मृग के रूप में पैदा हुए थे. वह जंगल में फल खाकर रहते थे.
उस जंगल में एक शिकारी भी मृग का शिकार करने आता था. वह फलदार वृक्षों के नीचे मृग के पदचिन्ह देखकर उस वृक्ष पर अटारी बनकर बैठ जाता था.
जैसे ही कोई मृग उस वृक्ष के नीचे फल खाने आता. वह शिकारी अटारी पर से ही बाण चलाकर उस मृग को मार देता तथा उनका मांस बेचकर गुजारा करता था.
एक दिन जिस वृक्ष पर शिकारी बाण-साधे बैठा था, गौतम बुद्ध (मृग रूप में) इस वृक्ष की ओर फल खाने चले. लेकिन वह वृक्ष से थोड़ी दूर किसी कारणवश रुक गए. शिकारी मृग (गौतम बुद्ध) को जल्दी ना आते देख अटारी पर बैठे बैठे फलो को उनकी तरफ आगे बढ़ाकर फेंका. मृग समझ गया कि वृक्ष पर शिकारी है.
अधिक सोच विचार ना करके उसने कहा – हे! वृक्ष पहले तू फलो को सीधे ही गिराता था लेकिन आज तुमने अपना वृक्ष स्वभाव छोड़ दिया. मेरे आगे विशेष रूप से फल फेंक रहा है. सो जब तूने वृक्ष भाव छोड़ दिया है तो मैं भी तुझे छोड़कर दूसरे वृक्ष के नीचे जाकर अपना आहार करूंगा.
इस प्रकार उस मृग (गौतम बुद्ध) की जान बच गई.
शिक्षा – यदि कोई व्यक्ति अपने स्वभाव के विपरीत हम से व्यवहार करे तो उससे सतर्क रहना चाहिए.
(Source – जातक कथा से)
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