बुध्द कहते हैं- ईश्वर कहीं भी नही हैं उसे ढूढ़ने में अपना वक़्त और ऊर्जा बर्बाद मत करों ।
*धर्म और धम्म में अंतर*
- धर्म में आप ईश्वर के खिलाफ नहीँ बोल सकते, धर्म ग्रंथो की अवेहलना नहीँ कर सकते, अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीँ कर सकते। जबकि धम्म मेँ तो स्वयं को जाँचने परखने और अपनी बुद्धि का प्रयोग करने की शिक्षा हैँ।*
- धर्म कहता हैँ कि तेरा भला करने तथाकथित ईश्वर जैसी कोई ताकत आयेगी।
- जबकि धम्म कहता हैँ- अत्त दीप भवः अर्थात अपन दीपक स्वयं बनो।
- बुध्द भी कहते हैँ: “ना मैँ मुक्तिदाता हुँ, ना मैँ मोक्षदाता हुँ। मैँ सिर्फ मार्ग दिखाने वाला हूँ। धम्म अर्थात जीवन जीने का सर्वोतम मानवतावादी आधार ।
- बहुत से लोग मानते होँगे कि धर्म और धम्म एक ही हैँ। उनको विश्लेषण करने की जरुरत हैँ। धर्म मेँ जन्म लेना पङता हैँ, जबकि धम्म में (शिक्षा) प्राप्त करनी पङती हैँ। जिसे कोई भी प्राप्त कर सकता हैँ।
- बुद्ध ने अपने अनुयाइयोँ से कहा था कि धर्म में अतार्किक बातेँ हैँ। जैसे आत्मा, परमात्मा,भूत, ईश्वर, देवी-देवता आदि। जबकि धम्म वैज्ञानिक द्रष्टिकोण पर आधारित हैँ। धम्म तर्क और बुद्धि को प्राथमिकता देता है। इसलिये ईश्वर को नकारता हैँ।
- धर्म मेँ असामनता है, भेदभाव है, ऊँच-नीच है। जबकि धम्म मेँ सब एक है। सब बराबर हैँ। कोई भेदभाव नही है। धम्म एक शिक्षा है, एक ज्ञान है, जो सबके लिये है। धर्म मेँ विभाजन है। अधिकार वर्गोँ मेँ विभाजित है। जबकि धम्म मेँ वर्गहीनता है। अधिकार और ज्ञान सभी के लिये है।
- धर्म मेँ कोई ब्रम्हा को सृष्टि का रचयिता बताता है, तो कोई स्वयं को ईश्वर का दूत कहता है। जबकि धम्म की शिक्षा देने वाले ने खुद को ईश्वर का दूत ना बताकर खुद को एक सच्चा मार्ग दिखाने वाला मनुष्य बताया।
- *तथागत गौतम बुध्द, ’बुध्द’ का अर्थ बताते हुए कहते हैँ: “बुध्द” एक’अवस्था अथवा स्थिति का नाम हैँ। एक ऐसी स्थिति जो मानवीय ज्ञान की चरम अवस्था है। जब मनुष्य अपने तर्क और ज्ञान से एक दुर्लभ अवस्था (बोधिसत्व) को प्राप्त कर लेता है वो ‘बुध्द’ कहलाता है।
- बाबा साहब डॉ. आम्बेडकर को भी बोधिसत्व का दर्जा दिया गया हैँ, जो कार्य तथागत गौतम बुध्द ने अपने ज्ञान की बदौलत किया, वैसा ही कार्य डॉ. आम्बेडकर ने अपने ज्ञान की बदौलत किया। अतः वो भी ‘बोधिसत्व’ हुए।
- धर्मोँ मेँ कानून की कठोरता है। जबकि धम्म को मानने या ना मानने मेँ आप पूर्णतया स्वतंन्त्र है।
- धम्म आप पर कोई कानून नहीँ थोपता। धर्म मेँ सब कुछ फिक्स होता है। जैसे: जो धर्म ग्रंथों मेँ लिखा है, वही सत्य है। उसका पालन किसी भी कीमत पर आवश्यक है। जबकि धम्म परिस्थितियों के आधार पर मानव हित के लिये परिवर्तन को मानता है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखता हैँ।
- धम्म ‘ज्ञान’ है। इसलिये इससे तर्क-वितर्क और शिक्षा मे बढोतरी हो सकती है।* *जबकि धर्म मानव निर्मित ‘कानून’ है। ये जो भी नीला -पीला हैँ वही धर्म है।
वैज्ञानिक तर्क वितर्क ही सफल जीवन का मूल आधार हैं !
यह भी पढ़े: धम्म कहें या धर्म कहें? | Difference between Dhamma and Dharma
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