धम्म कहें या धर्म कहें? | Difference between Dhamma and Dharma

धम्म कहें या धर्म कहें!

वर्तमान समय में ‘धम्म’ और ‘धर्म’ शब्द पर बहुत चर्चा सुनाई देती है। विशेषकर बहुत लोग बुद्ध वचनों को ‘धर्म’ नहीं बल्कि ‘धम्म’ कहना पसंद करते हैं। क्या इन दोनों शब्दों में कोई भेद या अर्थ की भिन्नता है? इस लेख में यही जानने समझने का प्रयास करेंगे।

प्राचीन भारत में 2600 वर्ष पूर्व या पहले धम्म शब्द ही मिलता है। आजकल इस शब्द के स्थान पर हिंदी में धर्म ही मिलता है।

धर्म शब्द का अर्थ किसी संप्रदाय विशेष से लिया जाता है। जैसे हिंदू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई आदि। और अधिक गहराई से जानने पर ज्ञात होता है कि अमुक अमुक संप्रदाय, मत-मतान्तर, कर्मकाण्ड, रीति रिवाज, वेश-भूषा, दार्शनिक मान्यताएं, धर्मग्रंथ-शास्त्र-पुस्तकें, तीज-त्यौहार, पर्व-उत्सव, खान-पान, तिलक-छाप या चिन्ह आदि को धार्मिक प्रतीक या परंपराएं मान ली जाती है।

जबकि प्राचीन काल में ‘धम्म’ का अर्थ प्रकृति के नियम-सिद्धांत, कुदरत के कानून ऋत या विश्व के विधान को ‘धम्म’ कहते थे अर्थात कुदरत का या प्रकृति का वह कानून जो संसार के समस्त प्राणियों पर समान रूप से बिना किसी भेदभाव के लागू हो वही धम्म है।

धर्म का स्वरूप जो सदा सार्वजनिन, सार्वदेशिक, सार्वभौमिक या सार्वकालिक होता है। सनातन होता है। अणु अणु जिसे धारण किए होता है तथा जो कण-कण को धारण किए होता है। जो सरल, स्वाभाविक, सहज होता है। वही ‘धम्म’ होता है।

अब यदि धर्म शब्द के प्रचलित अर्थ और वास्तविक स्वरूप का तुलनात्मक अध्ययन करें तो ज्ञात होगा कि धर्म यानी ‘सम्प्रदाय’ ही धम्म का वास्तविक शत्रु है। ‘सम्प्रदाय’ का धम्म से कोई लेना देना नहीं होता। वह सदा धम्म को गौण और संकुचित बना देता है अतः नंदनीय भी है।

इसलिए धर्म या धम्म को समझाते हुए विपश्यनाचार्य गोयंका जी ने सही कहा है-

धर्म न हिंदू बौद्ध है, धर्म न मुस्लिम जैन।
धर्म चित्त की शुद्धता, धर्म शांति-सुख चैन।।

धम्म की प्राचीन परिभाषा के अनुसार वह कुशल अथवा अकुशल दोनों स्वरूप का हो सकता है। इसलिए धीरे-धीरे कुशल कर्म अर्थात पुण्य कर्मों को ही धर्म कहा जाने लगा। और अकुशल कर्मों को अधर्म कहा जाने लगा। किंतु मूल रूप में धर्म या धम्म तो स्वभाव ही था। अच्छा या बुरा, कुशल या अकुशल, आर्य (श्रेष्ठ) या अनार्य, पुण्य या पापकर्म अर्थात दोनों स्वभाव। जिसे हम धारण करें वही धर्म या धम्म। फिर परिणाम भी वैसा ही अच्छा या बुरा हो सकता है।

इसलिए संक्षेप में यही कह सकते हैं कि धम्म और धर्म समान होते हुए भी आजकल भिन्न हो गए हैं। धर्म संप्रदाय हो गया है। गौण हो गया है। अतः हमको आदर्श बौद्ध होने के नाते बुद्ध वचनों को सही अर्थों में जानते व समझते हुए धारण करना चाहिए। नमो बुद्धाय।

– धम्मरत्न आनन्द (9694083952)

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