10 पारमिताए (10 Perfections)
जब कोई व्यक्ति बुद्ध बनता है, तो संसार में दुख और अज्ञान के अंधकार में फंसे हुए लोगों के लिए उसका ज्ञानी रूपी आलोक से करोड़ों लोगों को परम शांति की राह मिलती है.
सुमेध तापस की बुद्ध बनने की यात्रा बोधिसत्व के रूप में भगवान दीपंकर सम्यक सम्बुद्ध से आशीर्वाद प्राप्ति के बाद आरंभ होती है।
पारमिताएं किसी बोधिसत्व के लिए बुद्ध बनने की राह में आधारशिला या नीव होती है। बुद्धत्व पद पर पहुंचने की सीढ़ी होती है। पारमिता का सामान्य अर्थ उत्कृष्टता या पूर्णता होता है। श्रीलंका के भिक्षु पूज्य सिरि शिवली ने पारमिता का अर्थ ‘श्रेष्ठ’ होना बताया है.
बौद्ध त्रिपिटक साहित्य की महामंगल गाथा में परमिता प्राप्ति के उद्देश्य को समझाते हुए इस प्रकार से कहा गया है –
महा कारुणिको नाथो, हिताय सब्ब पाणिनं ।
पूरेत्वा पारमी सब्बा, पत्तो सम्बोधिमुत्तमं ॥
अर्थात् महा कारुणिक भगवान बुद्ध ने सभी प्राणियों के हित-सुख के लिए सभी पारमिताओ को पूर्ण करके उत्तम संबोधि को प्राप्त किया।
यहां यह स्पष्ट है कि कोई भी बोधिसत्व अपने निजी स्वार्थ के लिए कुछ भी नहीं करता है। बल्कि वह अनेक प्राणियों के हित-सुख मंगल कल्याण के लिए ही उपकार की भावना से उदत्त होकर श्रेष्ठ गुणों को पूरा करता हुआ लोक में बार-बार उत्पन्न होता है
बोधिसत्व को इन श्रेष्ठ गुणों को पूरा करने में अनेक बाधाओं को सहना पड़ता है तथा उन्हें पार भी करना पड़ता है। अनेक जन्म जन्मान्तरों में पारमिताओं को उच्चतम स्तर पर प्राप्त करके कोई व्यक्ति श्रेष्ठ बुद्धत्व को प्राप्त करता है।
10 पारमिताए
पारमिता 10 होती हैं। इनमें दस गुण को सम्मिलित किया गया। इन्हीं को 10 उप पारमिता और 10 परमार्थ पारमिता में विभक्त करके कुल 30 पारमिता बुद्ध के लिए अनेक आवश्यक गुणधर्मों बोधिसत्व रूप में प्राप्त किया जाता है। 10 पारमिता इस प्रकार से है
1. दान अर्थात त्याग या देना
2. शील अर्थात सदाचार (मन, वचन, कर्म शुद्ध होना)
3. नैष्क्रम यानी गृह त्याग (सुख-सुविधाओं का त्याग)
4. प्रज्ञा अर्थात अनुभूत ज्ञान (अंधविश्वासों को छोड़ना)
5. विरिय,पुरुषार्थ या पराक्रम (निर्भयता)
6. क्षान्ति यानी शांति (किसी भी परिस्थिति में चित्त विचलित नहीं होने देना)
7. सत्य अर्थात सही जानकारी (काया, वेदना, चित्त और धम्मों का सत्य-दर्शन)
8. अधिष्ठान यानी दृढ़संकल्प (दृढ़ इच्छा शक्ति से सभी बाधाओं और समस्याओं पर विजय प्राप्ति)
9. मैत्री अर्थात निर्मल चित्त की भावना (मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा भावना)
10. उपेक्षा यानी समता भाव (निर्लिप्त भाव से हर स्थिति परिस्थिति में जीवन जीना)
बोधिसत्व की जीवन यात्रा के इन महान 10 सद्गुणों के अनेक लौकिक व अलौकिक लाभ हैं। यह गुण परम सुख निर्वाण की ओर ले जाते हैं। सभी दुखों का नाश करते हैं। चित्त में अनेक उत्तम गुणों का संग्रह करते हैं। सभी का मंगल हो।
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– डी. आर. बेरवाल ‘धम्मरतन’, अजमेर
9694083952