मंगल-धम्म क्या है?

मंगल-धम्म

संसार में सदैव ही अनेक मनुष्य और अन्य प्राणी मंगल धम्मों के संबंध चिंतन मनन करते रहे हैं। भगवान् बुद्ध के समय में भी अनेक वर्षों तक ऐसा होता आया है, किंतु उनका ठीक से ज्ञान ना होने के कारण देवाधिदेव भगवान बुद्ध ने सब्ब पापों के विनाश हेतु इन अड़तीस मंगल धम्मों का उपदेश किया जो इस प्रकार से हैं –

mangal-dhamma

भगवान बुद्ध के उपस्थापक आनंद कहते हैं- ऐसा मेरे द्वारा सुना गया है-

एक समय भगवान श्रावस्ती नगर के जेतवन उद्यान में, जो कि श्रेष्ठी अनाथपिंडक द्वारा बनवाया गया था, उस संघाराम में विहार कर रहे थे।

उस समय कोई एक दिव्य कान्तिमान देवता अधिकांश रात्रि बीत जाने पर संपूर्ण जेतवन को अपने दिव्यालोक से आलोकित करते हुए, जहां भगवान थे वहां उनके समीप उपस्थित हुआ।

उपस्थित हो, भगवान को अभिवादन करके एक और खड़ा हो गया। एक और खड़े होकर उस देवता ने गाथा में भगवान से इस प्रकार कहा –

मंगल और कल्याण की कामना करते हुए कितने ही देव और मनुष्य मंगलधम्मों के संबंध में चिंतन करते रहे हैं. कृपाकर तथागत आप ही बतावें कि वास्तविक उत्तम मंगल क्या है?

उस देवता की प्रार्थना पर भगवान बुद्ध ने भी गाथा में ही उत्तर दिया –

हे देवपुत्र! मुर्खो की संगति न करना, ज्ञानियों की संगति करना और जो पूजनीय हैं उनकी पूजा करना – यह उत्तम मंगल है।

उपयुक्त स्थान पर निवास करना, पुण्यों का संचय करना और अपने आप को सम्यक रूप से समाहित रखना – यह उत्तम मंगल है।

अनेक तरह की विद्याओं को अर्जित करना, परिवार का पालन पोषण करना और आकुल – उद्विग्न न करने वाले निष्पाप व्यवसाय करना – यह उत्तम मंगल है – यह उत्तम मंगल है।

दान देना, धम्म का आचरण करना, बंधु – बांधवो की सहायता करना और अनवर्जित कर्म ही करना – यह उत्तम मंगल है।

तन-मन से पापों का त्याग करना, मदिरा सेवन से दूर रहना और कुशल धम्मों के पालन में सदा सचेत रहना – यह उत्तम मंगल है।

पूजनीय व्यक्तियों को गौरव देना, सदा विनीत रहना, संतुष्ट रहना, दूसरों के द्वारा किए गए उपकार स्वीकार करना और उचित समय पर धम्म को सुनना – यह उत्तम मंगल है।

क्षमाशील होना, आज्ञाकारी होना, श्रमणों का दर्शन करना और उचित समय पर धम्म की चर्चा करना – यह उत्तम मंगल है।

तप ब्रह्मचर्य का पालन करना, आर्य-सत्यों का दर्शन करना और निर्वाण का साक्षात्कार करना – यह उत्तम मंगल है।

लाभ-अलाभ, यश-अपयश, निंदा-प्रशंसा और सुख-दुख इन आठ प्रकार के लोक धम्मों से चित्त को विचलित नहीं होने देना, नि:शोक रहना, निर्मल रहना और निर्भय रहना – यह उत्तम मंगल है।

इस प्रकार के मंगल कर्म करके जो लोग जीवन जीते हैं, वे सर्वत्र अपराजित होते हैं, सर्वत्र कल्याण लाभी होते हैं। ऐसे मंगल मर्गियों का यही उत्तम मंगल है।

संदर्भ – सुत्तनिपात – महामंगल सुत्त.
प्रस्तुति – डी.आर. बेरवाल ‘धम्मरतन’ अजमेर.

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