असुभानुपस्सिं विहरन्तं इन्द्रियेसु सुसंवुतं ।
भोजनम्हि च मत्तञ्ञुं कुसीतं सद्धं आरद्धवीरियं।
तं वे नप्पसहति मारो वातो सेलं’व पब्बतं ।।८।॥
हिंदी अर्थ
जो काम-भोग के जीवन में रत नहीं है, जिसकी इन्द्रियाँ उसके काबू में हैं, जिसे भोजन की उचित मात्रा का ज्ञान है, जो श्रद्धावान् तथा उद्योगी है, उसे मार वैसे ही नहीं हिला सकता, जैसे वायु हिमालय पर्वत को ।