धम्मपद – यमकवग्गो – 7

सुभानुपस्सिं विहरन्तं इन्द्रियेसु असंवुतं ।

भोजनम्हि अमत्तञ्ञुं कुसीतं हीनवीरियं ।

तं वे पसहति मारो वातो रुक्खं’व दुब्बलं ।।७॥


हिन्दी अर्थ

जो काम-भोग के जीवन में रत है, जिसकी इन्द्रियाँ उसके काबु नहीं है, जिसे भोजन की उचित मात्रा का ज्ञान नहीं है, जो आलसी है, जो उद्योगहीन है, उसे मार वैसे ही गिरा देता है, जैसे वायु दुर्बल वृक्ष को।

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