नामकरण |Naming Ceremony in Buddhist Culture

नामकरण मानव जीवन का द्वितीय मंगलकार्य है। यह मंगल-कार्य बच्चे के जन्म के 10 दिन के बाद किसी भी दिन किया जा सकता है।

इस मंगल कार्य को भिक्षु या अनागारिक या धर्माचार्य द्वारा सम्पन्न करवाना चाहिए।

यदि किसी समय ये उपस्थित न हों तो उपासक-उपासिका को स्वयं मिल-जुल कर इस मंगल-कार्य को समुचित ढंग से सम्पन्न करना चाहिए।

विधि

स्वच्छ और खुला स्थान जहाँ सभी निमंत्रित लोग सुविधा पूर्वक बैठ सकें। स्वच्छ तथा ऊँचे आसन पर भगवान् बुद्ध की प्रतिमा को प्रतिष्ठापित करें।

आसन को पुष्पों के द्वारा सज्जित करें। एक स्वच्छ लोटे में जल भरकर उसमें बोधिवृक्ष (पीपल) के पाँच पत्तों को रखकर भगवान् के सम्मुख रखें।

सफेद धागा, मोमबत्ती या दीपक, अगरबत्ती, धूपबत्ती, फल, फूल आदि आवश्यक सामग्री को भी प्रज्वलित व सजा कर रखें। तत्पश्चात् माता-पिता श्वेत वस्त्रों को धारण करके नवजात शिशु सहित भगवान् बुद्ध की प्रतिमा के सम्मुख यथावत् प्रणाम कर के बैठ जायें।

भली प्रकार बैठने के बाद सफेद धागे को तीन तार का मंगलसूत्र बनाकर उसका एक सिरा जल-पत्र में बाँध कर शिशु के माता-पिता के हाथों में पकड़ाते हुए सभी हुए उपस्थित लोगों के हाथों में थमा दें।

धागे के दूसरे सिरे को बुद्ध की प्रतिमा को पीछे से लेकर लोटे में डाल दें। तत्पश्चात् मंगलकर्ता उपस्थित लोगों को त्रिशरण-पंचशील ग्रहण करायें।

फिर त्रिरत्ल (बुद्ध, धम्म एवं संघ) की वन्दना करनी चाहिए। पूजा भावना के साथ-साथ महामंगल-सुत्त का पाठ करना चाहिए।

एवं मे सुतं। एकं समयं भगवा सावत्थियं विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे। अथ खो अञ्जतरा देवता अभिक्कन्ताय रक्तिया अभिक्कन्तवण्णा केवलकप्पं जेतवनं ओभासेत्वा येन भगवा तेनुपसंकमि, उपसंकमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्तं अट्ठासि। एकमन्तं ठिता खो सा देवता भगवन्तं गाथाय अज्झभासि:

बहु देवा मनुस्सा च मंगलानि अचिन्तयुं। आकंखमाना सोत्थानं ब्रुहि मंगलमुत्तमं।।1।। असेवना च बालानं पण्डितानं च सेवना।
पूजा च पूजनीयानं एतं मंगलमुत्तमं ।।2 ।। पतिरुपदेसवासो च पुब्बे च कतपुञ्ञजता। अत्तसम्मापणिधि च एतं मंगलमुत्तमं ।।3।। बाहुसच्चं च सिप्पं च विनयो च सुसिक्खितो। सुभासिता च या वाचा एतं मंगलमुत्तमं ।।4।। माता-पितु उपट्टानं पुत्तदारस्स संगहो।
अनाकुला च कम्मन्ता एतं मंगलमुत्तमं ।।5।। दानञ्च धम्मचरिया च ञातकानं च संगहो। अनवज्जानि कम्मानि एतं मंगलमुत्तमं ।।6।।

अरति विरति पापा मज्जपाना च सञ्ञजमो । अप्पमादो च धम्मेसु एतं मंगलमुत्तमं ।।7 ।। गारवो च निवातो च सन्तुट्ठी च कतञ्चुता। कालेन धम्मसवरणं एतं मंगलमुत्तमं ।।8 ।। खन्ती च सोवचस्सता समणानं च दस्सनं । कालेन धम्मसाकच्छा एतं मंगलमुत्तमं ।।19।। तपो च ब्रह्मचरियं च अरियसच्चान-दस्सनं। निब्बानसच्छिकिरिया च एतं मंगलमुत्तमं ।।10 ।। फुट्ठस्स लोकधर्मेहि चितं यस्स न कम्पति । असोकं विरजं खेमं एतं मंगलमुत्तमं ।।11 ।। एतादिसानि कत्वान सब्बत्थमपराजिता।
सब्बत्थ सोत्थिं गच्छन्ति तं तेसं मंगलमुत्त ।। १२॥

अर्थ

महामंगल-सुत्त: इस सुत्त के अन्तर्गत अड़तीस प्रकार के शुभ-कर्म के बारे में बताया गया है।

ऐसा मैंने सुना। एक समय भगवान् श्रावस्ती में अनाथपिण्डक के जेतवनाराम-विहार में ठहरे हुए थे।

तब एक देवता रात्रि के अन्तिम पहर में अपनी दीप्ति से समस्त जेतवन को आलोकित करता हुआ भगवान बुद्ध के पास आया और उन्हें प्रणाम करके एक ओर खड़े होकर गाथा में भगवान् से कहा- भगवान् कल्याण की आकांक्षा रखते हुए बहुत से देवताओं और मनुष्यों ने लगातार चिन्तन किया कि कल्याण कैसे होगा? आप कृपा करके बतलाइए कि उत्तम मंगल (कल्याण) क्या है? ।।१।।

इस प्रकार उस देवता की प्रार्थना पर भगवान् बुद्ध ने देवताओं और मनुष्यों के लिए अड़तीस (इ.) प्रकार के शुभ-कर्म के बारे में बताया। मुर्खों की संगति न करना, बुद्धिमानों की संगति करना और पूजनीयो की पूजा करना-यह उत्तम मंगल है ।।२।।

अनुकूल स्थानों में निवास करना, पूर्व जन्म के संचित पुण्य का होना और अपने को सन्मार्ग पर लगाना-यह उत्तम मंगल है ।।३।।

बहुश्रुत होना (त्रिपिटक का गहन ज्ञान होना), शिल्प सीखना, शिष्ट होना, सुशिक्षित होना और सुभाषण करना अर्थात् शिल्प विद्याओं को जानना, चरित्र-गठन का निर्माण करते हुए शिक्षित होना-यह उत्तम मंगल है ।।४।।

माता-पिता की सेवा करना पुत्र स्त्री का पालन- पोषण करना और पाप रहित व्यवसाय करना – उत्तम मंगल है ।।५।।

दान देना, धर्माचरण करना बंधु-बान्धवों का आदर-सत्कार करना और निर्दोष कार्य करना-यह उत्तम मंगल है ।।६।।

मन, काया तथा वचन से पापों को त्यागना (अकुशल कार्यों कोन करना।), मद्यपान न करना और धार्मिक कार्यों में तत्पर रहना -यह उत्तम मगल है ।।७।।

गौरव करना, नम्र होना, सन्तुष्ट रहना, कृतज्ञ होना और उचित समय पर धर्म-श्रवण करना-यह उत्तम मंगल है॥८।।

क्षमाशील होना, आज्ञाकारी होना, श्रमणों और भिक्षुओं का दर्शन करना और उचित समय पर धार्मिक चर्चा करना यह उत्तम मंगल है।।९।।

तप, ब्रह्मचर्य का पालन, आर्यसत्यों का दर्शन और निर्वाण का साक्षात्कार-यह उत्तम मंगल है ।।१० ।।

जिसका चित लोकधर्म से विचलित नहीं होता, वह निःशोक, निर्मल तथा निर्भय रहता है अर्थात लाभ-अलाभ, यश-अपयश, निन्दा-प्रशंसा और सुख-दुख इन आठ प्रकार के लोक-धर्मों के द्वारा चित्त को विचलित नहीं होना चाहिए तथा शोक रहित होकर राग, द्वेष और मोह से रहित होना चाहिए-यह उत्तम मंगल है ।।११ ।।

इन अड़तीस प्रकार के शुभ कर्म करके सर्वत्र अपराजित (जीतकर) होकर लोग कल्याण को प्राप्त करना है-यह देवताओं तथा मनुष्यों के लिए उत्तम मंगल है ।।१२।।

नामकरण


महामंगल-सुत के बाद मंगल कार्य कर्ता को शिक्षा-प्रद ग्रन्थ धम्मपद के अनायास रूप से खोलते हुए जो पृष्ठ सामने आये उसकी प्रथम पंक्ति से अक्षरों को चुनकर 5 नाम सुन्दर तरीके से बनाना चाहिए। उन 5 नामों में से एक नाम, जो माता-पिता सहित परिजनो को भी पसन्द हो बालक-बालिका का नामकरण कर देना चाहिए।

नाम घोषणा करने की विधि

“सभी उपस्थित समाज-बन्धुओं को अवगत कराया जाता है कि आज हम जिस नवजात शिशु का नामकरण करने के लिए सम्मिलित हुए हैं। उसका नाम त्रिरत्न भावना के साथ______________घोषित किया जाता है। भविष्य में हम सभी शिशु को____________इसी नाम से सम्बोधित करेंगे। ” तीन बार उपरोक्त घोषणा को दुहराएँ।

इस घोषणा के बाद तीन ताल के सफेद मंगलसूत्र को शिशु और माता-पिता के हाथों में बांधना चाहिए।

तत्पश्चात महा मंगल गाथा से गाथा न. 12 से गाथा न. 19 तक पाठ करना चाहिए।

साथ-साथ बोधिपत्रों द्वारा आशीर्वादात्मक जल को माता-पिता सहित शिशु और उपस्थित लोगों पर छिड़कना चाहिए।

फिर जयमंगल अष्ठगाथा का पाठ करना चाहिए। अंत में त्रिरत्न नमस्कार का पाठ करते हुए इस मंगल उत्सव को संपन्न बनना चाहिए।

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