बुद्ध पूर्व वैदिक काल से ही भारतीय समाज में उपवास रखने की परम्परा शुरू हैं। परंतु वह उपवास अंधविश्वास व मिथ्यादृष्टि पर आधारित होता था।
सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए काल्पनिक देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए, उनेका तथाकथित आर्शिवाद प्राप्त करने के लिए और काल्पनिक स्वर्ग की प्राप्ति के उद्देश्य से ही उपवास किया जाता था।
वैदिक काल में उपवास का तात्पर्य एक विशिष्ट समयावधि के लिए आहारवर्ज का व्रत तथा पाप कर्म निवृति हेतु प्रायश्चित के स्वरूप उपवास व्रत का पालन किया जाता था।
तथागत बुद्ध ने तत्कालिन अंधविश्वास और अंध रूढ़ि-मान्यताओं पर प्रहार करके अपने भिक्खु संघ को और उपासक – उपासिकाओं को अंधश्रद्धा मुक्त काया, वाचा, मन से बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का उपोसथ मार्ग बतलाया।
इस ‘उपोसथ’ को हम जितनी ईमानदारी और निष्ठा से निभायेगें उतनी ही हमें व्यक्तिगत स्तर और सामाजिक स्तर पर शारीरिक और मानसिक सुख-शांति का लाभ प्राप्त हो सकता हैं। इसलिए बौद्धों में उपोसथ किया जाता हैं। उपवास नहीं। उपोसथ, उपावास से अत्यंत भिन्न प्रक्रिया हैं।
तथागत बुद्ध ने उपासक/उपासिकाओं के लिए उपोसथ हेतु माह के चार दिन महत्वपूर्ण बताये हैं। वे हैं-
- अमावस्या (चतुर्दशी)
- शुक्ल अष्टमी
- पूर्णिमा
- वैद्य अष्टमी
बुद्ध ने यह चार दिन ही क्यों निश्चित किये ?
इसके पीछे भी कारण हैं। यदि हम ध्यान से देखे तो इन दिनों पर हमारी मानसिक दशा में कुछ विशेष परिवर्तन होते हैं।
इन दिनों हमारें स्वभाव में चंचलता, चिडचिडापन, असंमय, कामुकता आदि दुर्भाव बलशाली हो जाते हैं।
पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की रोशनी प्रत्येक प्राणी को प्रभावित करती हैं। पूर्णिमा की पूर्ण रोशनी की खिचाव शक्ति हमें हिला देती हैं।
महिलाओं पर विशेष प्रभाव होता हैं। हमारा मन मस्तिष्क सारा का सारा उथल-पुथल हो जाता हैं। कईयों का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता हैं।
इन दिन पर हत्याएँ, आत्महत्याएँ, लुट, मारपीट, बलात्कार, धोेखा धड़ी आदि कई तरह से अपराध भी होते हैं।
इन दिनों हम अधिकतर साधारण व्यक्तियों का मन अकुशल चित्त प्रवृतियों की ओर झुकता हैं। अर्थात् यह सब पकृतिजन्य हैं।
इन घटनाओं से तथाकथित जादु-टोना, देवी-देवता, भूत-प्रेत आदि कल्पनाओं का कोई संबंध नहीं हैं।
इन दिनों अपने मन को और मानसिक भावनाओं को नियंत्रित रखना आवश्यक होता हैं और यह कार्य ‘उपोसथ’ पक्रिया से आसान होता जाता हैं, इसलिए तथागत बुद्ध ने उपरोक्त चार दिनों पर ‘उपोसथ’ करने की शिक्षा दी हैं।
उपोसथ कैसे सम्पन्न करें ?
सर्वप्रथम सवेरे जल्दी उठकर नित्यकर्म, घर की साफ-सफाई, स्नानादी के पश्चात शूभ्र वस्त्र परिधान पहनकर तथागत बुद्ध और बाबा साहेब की प्रतिमाओं के समक्ष अगरबत्ती-मोमबत्ती प्रज्वलित कर पुष्प अर्पण कर अपने घर का वातावरण मंगलमयी किया जाता हैं।
इस प्रकार हमें एकल रूप से अपने घर में अथवा सामहिक रूप से समीप के बुद्ध विहार में उपासक-उपासिकाएँ एकत्रित होकर तथागत एवं बाबासाहेब की प्रतिमाओं के समक्ष अगरबत्ती-मोमबत्ती प्रज्वलित व पुष्प् अर्पित कर पंचाग प्रणाम करना है।
पंचाग प्रणाम करके शांत चित्त से बैठकर भन्ते जी उपलब्ध हो तो भन्ते जी से और न हो तो किसी भी शीलवान उपासक से अथवा किसी भी उपासक से सामुहिक रूप से स्वयं ही धम्म साहित्य से पढ़कर अष्टशील ग्रहण करना चाहिए।
तत्पश्चात निम्नानुसार शीलव्रत धारण कर दिनचर्या करनी चाहिए।
- काया, मन, वाचा से किसी भी जीव की हत्या नहीं करगें और न ही किसी को इसके लिए प्रवृत करगें।
- इजाजत के बिना दूसरों की वस्तुओं का उपयोंग/उपभोग नहीं करगें।
- ब्रम्हचर्य का पालन करगें। शरीर, मन, और वाणी पर संयम रखेंगे।
- झुठ नहीं बोलेगें, फालतु की गपशप, निंदा, चुगली, गाली-गलौच, अपशब्द, कठोर शब्द नहीं बोलेंगे। इसका सर्वोत्तम उपाय हैं मौन। हो सके तो आर्य मौन ग्रहण करें।
- दारू, गांजा, भांग, बिड़ी, सिगरेट, तम्बाखु, गुटखा, नशा आदि पदार्थो का सेवन नहीं करेगें। और दुसरों को भी प्रवृत नहीं करेगें।
- असमय भोजन ग्रहण नहीं करेगें। दोपहर में 12 बजे के पूर्व भोजन करने बाद सम्पूर्ण दिन की रात्री में भी भोजन नहीं करेगें। शाम को हलका पेय-चाय, दूध आदि ले सकते हैं।
- विषय वासना को जागृत करने वाला श्रंगार नहीं करना चाहिए। (माला, गंध, विलेपन आदि नहीं लागायेगें।) सादगी पूर्ण दिन बिताना चाहिए।
उसी प्रकार काम वासना, विषय वासना जगाने वाले, मनोरजंन करने वाले, चित्त को विचलित करने वाले, नाटक, तमासें, नाच-गाने, फिल्म आदि नहीं देखने-सुनने चाहिए। - रात्री विश्राम के समय ऊंचे, नरम और विलाकसता पूर्ण पंलगों, गद्दों पर नहीं सोना चाहिए। शारीरिक स्थिति के अनुसार अगर हो सके तो जमीन पर ही चटाई, दरी या साधारण बिछाना बिछाकर जागृत अवस्था में सिंहशैया में सोना चाहिए।
- एक दिन का विपश्यना शिविर करें या अधिक से अधिक विपश्यना साधना करें।
- उपोसथ के दिन शाम को विहार में जाकर त्रिरत्न वंदना करने के बाद धम्म ग्रंथ का वाचन अथवा धम्म देशना सुननी चाहिए।
अंत में पंचाग प्रणाम करके कोई किसी से चर्चा न करके मौन धारण कर सीधे अपने घर जाकर सोने के पहले ध्यान भावना करनी चाहिए।
मैत्री, करूणा, मुदिता और उपेक्षा भावना करनी चाहिए। अनित्य, अनात्म और दुःख बोध का स्मरण करना चाहिए।
तत्पश्चात दाहिनी करवट पर लेटकर, दायाँ हाथ मोड़कर सिर के नीचे रखकर दायें पांव पर बायाँ पैर रखकर बायें पैर का अँगूठा जमीन को हल्का स्पर्श करें इस मुद्रा में शांतचित्त से आनापान भावना करतें हुए सोना चाहिए। यही सिंह शैया कहलाती हैं। - संसार के सभी दृश्य अदृश्य प्राणियों के लिए मैत्री करें।
- दान का अभ्यास करें।
इस प्रकार का उपोसथ उपासक-उपासिकायें माह में चार दिन या दो दिन या केवल पूर्णिमा के दिन कर सकते हैं। भिक्खुओं के लिए यह नित्य कर्म हैं, वृत हैं। वे इन शीलों का पालन करते हुए प्रतिदिन ही उपोसथ करते हैं।
उपोसथ के दिन उपासकों द्वारा ग्रहण किये जाने वाले अष्टशील (पााली में)
नमो तस्स अरहतों भगवतों सम्मासम्बुद्धस्स।
नमो तस्स अरहतों भगवतों सम्मासम्बुद्धस्स।
नमो तस्स अरहतों भगवतों सम्मासम्बुद्धस्स।
बुद्धं शरणं गच्छामी।
धम्मं शरणं गच्छामी।
संघं सरणं गच्छामी।
दुतियम्पि बुद्धं शरणं गच्छामी।
दुतियम्पि धम्मं शरणं गच्छामी।
दुतियम्पि संघं सरणं गच्छामी।
ततियम्पि बुद्धं शरणं गच्छामी।
ततियम्पि धम्मं शरणं गच्छामी।
ततियम्पि संघं सरणं गच्छामी।
त्रिशरण ग्रहण के पश्चात निम्नानुसार अष्टशील ग्रहण करें।
पाणातिपाता वेरमणी सिक्खपदं समादियामि।
अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदं समादियमि।
अब्रम्हाचर्य वेरमणी सिक्खपदं समादियमि।
मुसावादा वेरमणी सिक्खपदं समादियामि।
सुरा-मेर-मज्ज पमादठ्ठाना वेरमणी सिक्खपदं समादियामि।
विकाल भोजन वेरमणी सिक्खपदं समादियामि।
नच्च, दित, वादित, विसुकदस्सणा, माला, गंध, विलेपन, धारण-मंण्डल, विभूषनठाना वेरमणी, सिक्खपदं समादियामि।
उच्चासयना, महासयाना वेरमणी सिक्खपदं समादियामि।
धन्यवाद उपोसथ के बारे मैं बताने के लिये 🙏 नमो बुद्धाय….🙏💙
Am very thankful to you sir for sharing this beautiful information