एक समय की बात है एक गांव में एक प्रसिद्ध गुरु रहता था। हर कोई उससे अपनी समस्या का समाधान मांगने आता था। वो मासूम जानवर की बली दे कर लोगों से कहता था कि अब उनकी समस्या दूर हो जाएगी।
एक बार किसी खास दिन उसने एक भेड मंगवाकर अपने शिष्यों से कहा-“इस भेड़े को नदी पर ले जाओ। नहलाकर, गले में माला डालकर इसे सजा कर ले आओ।”
सभी शिष्य उस भेड को नदी पर ले गए और उसे नहलाया। नहलाकर उन्होंने उसे अच्छी तरह सजाया और नदी के किनारे खड़ा किया।
वह भेड़ कुछ सोच कर पहले तो हंसा और फिर थोड़ी देर बाद रोया।
उन शिष्यों ने किसी भी जानवर को ऐसे हंसता और रोता नहीं देखा था।
थोड़ी देर बाद वो भेड़ वहां खड़े उन शिष्यों से बोला “अब में तैयार हूं मुझे ले चलो”।
भेड़ को बोलता देख हैरान थे।
जिज्ञासावश सभी ने उससे पूछा “भेड तू जोर से हँसा और फिर रोया। किस कारण तू हँसा और किस कारण रोया ?”
भेड़ ने कहा “तुम लोग यह बात मुझे अपने आचार्य के पास ले जाकर पूछना।”
वो सभी उसी समय उस भेड़ को अपने गुरुजी के पास ले गए और पूरी घटना बताई।
गुरु हैरान था। यह बात सुन कर जिज्ञासा से भेड़ से पूछा– “हे भेड़ तू किस लिए हँसा, किस लिए रोया?”
भेड़ ने उस गुरु से कहा- पूर्व-जन्म में, मैं तेरे जैसा ही एक गुरु था। भगवान को खुश करने के लिए एक दिन मैने भी एक भेड मारकर बली दी थी।
लेकिन उस एक भेड़ को मारने के कारण, 499 योनियों में अपना शीश कटवाया और मुझे सजा मिली।
यह मेरा 500वॉ अन्तिम जन्म है। आज मैं इस दुःख से मुक्त हो जाऊँगा इस कारण में खुश हुआ और हंसा। और जो रोया, वो तो यह सोचकर कि मै तो एक भेड के मारने के कारण पाँच सौ जन्मों में अपना शीश कटाकर आज इस दुःख से मुक्त हो जाऊँगा, लेकिन यह तुम मुझे मारकर, मेरी तरह पाँच सौ जन्मों तक शीश कटाने को दुःख को भोगेगा। इसलिए तेरे प्रति करुणा से रोया ।”
यह बात सुन के उस गुरु ने कहा “भेड़ तू डर मत, मैं तुझे नहीं मारूंगा।”
भेड़ ने कहा ‘ तुम चाहे मुझे मारो या चाहे न मारो, मैं आज मरण-दुःख (मरने से) से नहीं बच सकता।”
गुरु ने कहा “भेड़ । डर मत। मै तेरी हिफाजत करता हुआ तेरे साथ ही घूमूंगा।’
भेड़ ने उत्तर दिया “तुम्हारी हिफाजत अल्प मात्र है, मेरा किया हुआ पाप बड़ा है।”
“इस भेड़ को किसी को न मारने दूंगा” सोचकर उस गुरु ने अपने शिष्यों को साथ ले कर भेड़ के ही साथ घूमने लगा।
भेड़ ने एक पत्थर की शिला के पास उगी हुई झाड़ी की ओर गर्दन उठाकर पत्ते खाने शुरू किये।
उसी क्षण उस पत्थर-शिला पर बिजली पड़ी। उसमें से पत्थर का एक टुकड़ा टूट कर भेड़ की गर्दन पर आ गिरा और उसकी गर्दन कट गई।
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उस समय बोधिसत्व उस जगह वृक्ष-देवता होकर उत्पन्न हुए थे।
वृक्ष-देवता ने देव-शक्ति से आकाश में पालथी मारकर बैठे हुए यह सोचा-‘अच्छा हो अगर हर प्राणी पाप-कर्म के इस प्रकार के फल को जान कर प्राण-हानि न करें। यदि प्राणी इस बात को समझ लें कि जन्म लेना दुख है, तो एक प्राणी दूसरे प्राणी की हत्या कभी न करे। प्राणपात करने वाले को चिन्तित रहता पड़ता है।’