धम्मपद – यमकवग्गो – 8

असुभानुपस्सिं विहरन्तं इन्द्रियेसु सुसंवुतं । भोजनम्हि च मत्तञ्ञुं कुसीतं सद्धं आरद्धवीरियं। तं वे नप्पसहति मारो वातो सेलं’व पब्बतं ।।८।॥ हिंदी अर्थ जो काम-भोग के जीवन में रत नहीं है, जिसकी इन्द्रियाँ उसके काबू में हैं, जिसे भोजन की उचित मात्रा का ज्ञान है, जो श्रद्धावान् तथा उद्योगी है, उसे मार वैसे ही नहीं हिला सकता, … Read more

धम्मपद – यमकवग्गो – 7

सुभानुपस्सिं विहरन्तं इन्द्रियेसु असंवुतं । भोजनम्हि अमत्तञ्ञुं कुसीतं हीनवीरियं । तं वे पसहति मारो वातो रुक्खं’व दुब्बलं ।।७॥ हिन्दी अर्थ जो काम-भोग के जीवन में रत है, जिसकी इन्द्रियाँ उसके काबु नहीं है, जिसे भोजन की उचित मात्रा का ज्ञान नहीं है, जो आलसी है, जो उद्योगहीन है, उसे मार वैसे ही गिरा देता है, … Read more

धम्मपद – यमकवग्गो – 6

परे च न विजानन्ति मयमेत्य यमामसे। ये च तत्थ विजानन्ति ततो सम्मन्ति मेधगा ।६॥ हिन्दी अर्थ अज्ञ लोग नहीं विचारते कि हम इस संसार में नहीं रहेंगे; जो विचारते हैं उन (पण्डितों) का वैर शान्त हो जाता है ।

धम्मपद – यमकवग्गो – 5

न हि वेरेन वेरानि सम्मन्तीध कुदाचनं । अवेरेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्तनो ।।५॥ हिन्दी अर्थ वैर, वैर से कभी शान्त नहीं होता; अवैर से ही वैर शान्त होता है–यही संसार का सनातन नियम है ।

धम्मपद – यमकवग्गो – 4

अक्कोच्छि मं अवधि मं अजिनि मं अहासि मे । ये तं न उपनय्हन्ति वेरं तेसूपसम्मति ॥४॥ हिन्दी अर्थ ” मुझे गाली दी ‘, ‘मुझे मारा’, ‘मुझे हराया ‘, ‘मुझे लूट लिया ‘, जो ऐसी बाते नहीं सोचते, उन्हीं का वर शान्त हो जाता है।

धम्मपद – यमकवग्गो – 3

अक्कोच्छि मं अवधि मं अजिनि मं अहासि मे । ये च तं उपनय्हन्ति वेरं तेसं न सम्मति ॥३॥ हिन्दी अर्थ ‘मुझे गाली दी’, ‘मुझे मारा’, ‘मुझे हराया ‘, ‘ मुझे लूट लिया’, जो ऐसी बातें सोचते रहते हैं, उनका वैर कभी शान्त नहीं होता।

धम्मपद – यमकवग्गो – 2

मनोपुब्बङ्गमा धम्मा मनोसेट्ठा मनोमया । मनसा चे पसन्नेन भासति वा करोति वा । ततो’नं सुखमन्वेति छाया’ व अनपायिनी ।॥२॥ हिन्दी अर्थ सभी धर्म (चैतसिक अवस्थायें) पहले मन में उत्पन्न होते हैं, मन ही मुख्य है, वे मनोमय है। जब आदमी स्वच्छ मन से बोलता या कार्य भारता है, तब सुख उसके पीछे पीछे वैसे ही … Read more

धम्मपद – यमकवग्गो – 1

मनोपुब्बङ्गमा धम्मा मनोसेट्ठा मनोमया । मनसा चे पदुट्ठेन भासति वा करोति वा । ततो’नं दुक्खमन्वेति चक्कं’व वहतो पदं ।। १।। हिन्दी अर्थ सभी धर्म (चैतसिक अवस्थायें) पहले मन में उत्पन्न होते हैं, मन ही मुख्य है, वे मनोमय हैं। जब आदमी मलिन मन से बोलता व कार्य करता है, तब दुःख उसके पीछे पीछे वैसे … Read more

धम्मपद – ब्राह्मणवग्गो – 423

dhammapad-423

पुब्बेनिवासं यो वेदि सग्गापायञ्च पस्सति । अथो जातिक्खयं पत्तो अभिञ्ञरावोसितो मुनि । सब्बवोसितवोसानं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ॥४१॥ हिंदी अर्थ जो पूर्व-जन्म को जानता है, जो स्वर्ग और नरक को देखता है, जिसका (पुनः) जन्म क्षीण हो गया, जो अभिज्ञावान् है, जिसने निर्वाण प्राप्त कर लिया हैं, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।